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कभी कभी आज भी शाहरुख़ की फ़िल्मों का बड़ा खुमार सा छा जाता है
आज दुनिया इतनी बदल गयी है पर वो नाइंटीज़ वाला प्यार बड़ा याद आता है
 
कभी साइकल से ५-५ मील का सफ़र बस एक झलक के लिए किया जाता था
एक बार मुड़ के मुस्कुरा दे बस इतने में दिन बन जाता था
आज कल तो घंटो तक दीदार ऐ हुस्न विडीओ कॉल पे हो जाता है
पर कुछ भी कहो वो नाइंटीज़ वाला प्यार बड़ा याद आता है
 
बाल्कनी में उनके एक इशारे के लिए गली के सारे कुत्तों से यारी रहती थी
एक प्यार को पूरा करने में सारे दोस्तों की, पूरी टोली की त्यारी रहती थी
आज अकेले अकेले बैठ के वहतसप्प के ब्लू टिक सब तय हो जाता है
पर कुछ भी कहो वो……
 
तब उनके पैर डग आउट में पड़ते ही रोनल्डो वाली ऊर्जा आ जाती थी
काँक्रीट के मैदान में जोंटी वाली फ़ील्डिंग और बिना बात डाइव की इच्छा भाती थी
अब तो बाहर बैठक़े विशसज्ञ बना हर क़ोई मोबाइल पर अपनी ही टीम बनाता है
कुछ भी कहो वो..
 
तब हर नुक्कड़ चौराहे पर अपने सीमा की लकीर दिखायी जाती थी
हर आशिक़ के प्रेम प्रसंग की गवाही थाने और अस्पताल में ली जाती थी
अब तो pubg में इंटर्नैशनल गैंग वार बैठे बैठे हो जाता हैं
माना ग़लत था वो कृत्य पर फ़िर भी वो नाइंटीज़ वाला..
 
तब सालों साल तो दोस्ती के शुरुआत में ही लग जाते थे
कयी आशिक़ तो दिलबर के शादी में इतर छिड़कते नज़र आते थे
आज फ़ेसबुक और इंस्टा पे हर रिश्ता मिनटो में टैग हो जाता है
कुछ भी कहो पर वो नाइंटीज़ वाला..
 
तब उनसे रु बरु होने की ख़ातिर tution पे tution लगवाए जाते थे
वहाँ क्लास के भीतर से ज़्यादा हम उनके क्लास के बाहर ही नज़र आते थे
अब तो ये सारा काम भी लेफ़्ट और राइट स्वाइप से हो जाता है
पर कुछ भी कहो वो नाइंटीज़

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